Family pension change: भारत में पेंशन व्यवस्था को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पेंशन नीति पर पुनर्विचार करने को कहा है, विशेषकर फैमिली पेंशन के मामले में। वर्तमान नियमों के अनुसार, किसी कर्मचारी की सेवाकाल में मृत्यु होने पर, उसके परिवार को पहले 10 वर्षों तक उसके अंतिम बेसिक वेतन का 50% पेंशन के रूप में मिलता है, जो बाद में घटकर 30% हो जाता है।
इस नीति को चुनौती देते हुए, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। याचिका में तर्क दिया गया है कि एक बार जब 50% की दर से पेंशन मिलनी शुरू हो जाती है, तो 10 साल बाद इसे 30% तक घटाना न्यायसंगत नहीं है। पेंशनभोगी का जीवन 50% पेंशन के अनुसार ढल जाता है, और बाद में इसमें कटौती करना उचित नहीं है।
विशेष रूप से, याचिका में पूर्व सैनिकों की विधवाओं की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यदि कोई सैनिक कम उम्र में सेवा के दौरान स्वर्गवासी हो जाता है, तो परिवार का पूरा भार उसकी विधवा पर आ जाता है। ऐसी स्थिति में, फैमिली पेंशन ही उनकी आय का एकमात्र स्रोत होता है। 30% की दर से पेंशन में गुजारा करना बेहद कठिन हो जाता है।
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुरुआत में इस मामले को सरकार का नीतिगत विषय मानकर सुनवाई से इनकार कर दिया था। लेकिन वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता की दलीलों ने कोर्ट को इस मुद्दे पर विचार करने के लिए राजी कर लिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा पेंशन नीति मनमानी और अन्यायपूर्ण है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मृतक सैनिकों की विधवाओं और आश्रितों के अधिकारों का उल्लंघन करती है।
याचिकाकर्ता का सुझाव है कि न्यूनतम फैमिली पेंशन 9,000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये की जानी चाहिए। उनका तर्क है कि एक औसत सैनिक का अंतिम वेतन लगभग 50,000 रुपये होता है, इसलिए उसकी विधवा को कम से कम 15,000 रुपये पेंशन मिलनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने सुझाव दिया है कि क्यों न आजीवन 50% की दर से फैमिली पेंशन दी जाए और न्यूनतम पेंशन 15,000 रुपये की जाए। यह फैसला देश भर के लगभग 5.53 लाख JCO/OR रैंक के पूर्व सैनिकों की विधवाओं के लिए बड़ी राहत हो सकता है।